भारत मानसिक स्वास्थ्य कर्मियों के संकट से जूझ रहा है

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भारी कमी है — हर 1 लाख लोगों पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं, जबकि WHO की अनुशंसित दर 1.7 है। मनोवैज्ञानिक, मानसिक स्वास्थ्य नर्सें और काउंसलर भी बेहद कम हैं, जिससे बड़ी आबादी को पर्याप्त सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित हैं, जहाँ मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की क्षेत्रीय क्षमता बहुत कम है।

कोविड महामारी के बाद तनाव, बेरोजगारी और युवाओं में अवसाद जैसी समस्याओं के कारण मानसिक स्वास्थ्य की ज़रूरतें तेज़ी से बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी के कारण प्रतीक्षा समय बढ़ रहा है, गलत निदान हो रहा है और शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में मांग पूरी नहीं हो पा रही है।

हितधारकों ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करे, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में भर्ती बढ़ाए और प्राइमरी हेल्थ सेंटरों में मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को शामिल करे ताकि इस अंतर को कम किया जा सके।