
जब कोई बच्चा बार-बार बुखार से पीड़ित होता है, पैरों में दर्द होता है या कई दिनों तक स्कूल नहीं जा पाता, तो माता-पिता अक्सर मान लेते हैं कि यह सिर्फ कमजोरी या इम्युनिटी की कमी है। लेकिन हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. अंजलि राव कहती हैं कि ऐसे कई मामलों में असली कारण समय पर पहचाना ही नहीं जाता।
सिकल सेल डिज़ीज़ एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कणिकाएं अपनी सामान्य आकृति बदलकर कठोर हो जाती हैं। इससे रक्त वाहिकाओं में रुकावटें आती हैं, जो दर्द, अंगों को नुकसान, संक्रमण और कभी-कभी स्ट्रोक तक का कारण बनती हैं। यह रोग वंशानुगत होता है और बचपन में ही इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
“तेलंगाना में, खासकर आदिलाबाद और खम्मम जैसे आदिवासी क्षेत्रों में, इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या रिपोर्ट की तुलना में कहीं अधिक है,” वे कहती हैं। “अधिकांश परिवारों को इस बीमारी के बारे में जानकारी ही नहीं होती। जब वे हमारे पास पहुंचते हैं, तब तक बच्चा पहले से ही गंभीर स्थिति में होता है।”
डॉ. राव एक ऐसा क्लिनिक चलाती हैं, जहां नवजात शिशुओं के लिए हील-प्रिक टेस्ट किया जाता है, जिससे लक्षण शुरू होने से पहले ही बीमारी का पता लगाया जा सकता है। “हम फोलिक एसिड, पेनिसिलिन शुरू कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उन्हें सही टीके मिलें। ये छोटे कदम भविष्य की गंभीर बीमारी को रोक सकते हैं।”
वह यह भी जोड़ती हैं कि उपचार आजीवन चलता है, लेकिन संभालने योग्य है। “अगर सही देखभाल की जाए तो ज़्यादातर बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं। दर्द के दौरान तरल पदार्थ और दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं, और नियमित जांच से जटिलताएं कम होती हैं।”
उनकी टीम ज़िला परिषद स्कूलों और आदिवासी इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर माता-पिता से बात करती है और वहीं बच्चों की जांच करती है। “इन्हें पहुँचाने का यही एकमात्र तरीका है।”
वह कहती हैं कि आनुवंशिक बीमारियों के प्रति जो कलंक है, उसे समाप्त होना चाहिए। “यह किसी की गलती नहीं है। अगर समय पर निदान हो और नियमित देखभाल हो, तो ये बच्चे भी स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।”