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ये सवाल अक्सर फुसफुसाहट में पूछे जाते हैं। क्या यह छूने से फैलता है? क्या यह खाने की किसी चीज़ के組bination से हुआ? क्या इसे हल्दी या गाय के दूध से ठीक किया जा सकता है? त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. कविता नारंग कहती हैं कि उनके पास आने वाले मरीज आज भी यही सवाल पूछते हैं।
विटिलिगो एक ऑटोइम्यून रोग है जिसमें शरीर अपनी ही रंग बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला करता है, जिससे त्वचा पर सफेद या हल्के रंग के धब्बे बन जाते हैं। यह न तो हानिकारक है, न संक्रामक, और न ही गंदगी या खानपान से होता है — फिर भी समाज में इसे लेकर कलंक बना हुआ है।
“लोग अब भी मानते हैं कि यह कोई सज़ा है या अशुद्धता। मेरे पास ऐसे मरीज़ आए हैं जिन्हें शादियों में जाने से मना किया गया या कहा गया कि उनकी शादी नहीं होगी,” डॉ. नारंग बताती हैं। “लेकिन यह एक मेडिकल कंडीशन है। शर्म की कोई ज़रूरत नहीं।”
इलाज इस पर निर्भर करता है कि दाग कितने फैले हैं और कब से शुरू हुआ। “हम टैक्रोलिमस जैसी क्रीम, नैरोबैंड यूवीबी फोटोथैरेपी, और विटामिन डी आधारित दवाएं देते हैं। चेहरा जल्दी रिस्पॉन्ड करता है, उंगलियाँ और पैर धीमे ठीक होते हैं,” वे कहती हैं।
नए इलाज जैसे JAK inhibitors विदेशों में ट्रायल में हैं और जल्द भारत में भी आ सकते हैं। “मगर इलाज के बाद भी सबको पूरा रंग वापस नहीं आता। इसलिए हमें सिर्फ नतीजों पर नहीं, स्वीकार्यता पर भी ध्यान देना चाहिए।”
बंजारा हिल्स स्थित अपने क्लिनिक में उन्होंने सपोर्ट ग्रुप्स शुरू किए हैं। “जब कोई अपने जैसे लोगों को देखता है, खासकर आत्मविश्वास से भरे लोगों को, तो खुद को छुपाना बंद करना आसान हो जाता है।”
25 जून को वर्ल्ड विटिलिगो डे के मौके पर उनका क्लिनिक एक ओपन सेशन आयोजित कर रहा है जिसमें परिवार और मरीज डॉक्टरों से सवाल पूछ सकेंगे और अपने अनुभव साझा कर सकेंगे। “यह बीमारी दिखती है, लेकिन इसका भावनात्मक असर छुपा रहता है। हम दोनों को सामने लाना चाहते हैं।”